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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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नज्मुस्साक़िब

1960

नज्मुस्साक़िब

ग़ज़ल 13

अशआर 13

मिरे हाथ में तिरे नाम की वो लकीर मिटती चली गई

मिरे चारा-गर मिरे दर्द की ही वज़ाहतों में लगे रहे

कभी टूटने वाला हिसार बन जाऊँ

वो मेरी ज़ात में रहने का फ़ैसला तो करे

दिल को आज तसल्ली मैं ने दे डाली

वो सच्चा था उस के वादे झूटे थे

बदन को जाँ से जुदा हो के ज़िंदा रहना है

ये फ़ैसला है फ़ना हो के ज़िंदा रहना है

दुख-भरा शहर का मंज़र कभी तब्दील भी हो

दर्द को हद से गुज़रते कोई कब तक देखे

पुस्तकें 7

 

ऑडियो 8

अना की क़ैद से निकले मुक़ाबला तो करे

किसी ख़मोशी का ज़हर जब इक मुकालमे की तरह से चुप था

झील में बहते फूल कँवल के झूटे थे

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