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पुस्तक: परिचय

مسیحیت ایک توحید پرست مذہب ہے جس کی بنیاد یسوع مسیح کی زندگی اور ان کی تعلیمات ہیں اور کلیسیا سے مراد مسیحی الٰہیات یعنی وہ تحریک و تنظیم ہے جس کو یسوع مسیح نے اپنے بعد نجات کی مہم کو انسانوں کے درمیان پھیلانے کے لیے قائم کیا تھا۔مسیحیت کا آغاز پہلی صدی عیسوی میں ایک چھوٹی یہودی جماعت کی شکل میں ہوا اور بہت کم عرصہ میں یہ مذہب مشرق وسطی اور رومی سلطنت کے علاقوں خصوصاً شمالی افریقا میں پھیل گیا۔ زیر نظر کتاب"تاریخ مسیح"خواجہ حسن نظامی کی تحریر کردہ کتاب ہے ،اس کتاب میں عیسائی مذہب کی تاریخی معلومات پیش کی گئی ہے۔حضرت عیسی ؑ کی پوری زندگی اور ان کی تعلیم کو تاریخی حالات کی روشنی میں معتبر کتابوں کے حوالے سے پیش کی گیا ہے۔اس کتاب کے مقصد کے تحت وہ خود لکھتے ہیں "یہ کتاب اسکول کے لڑکوں اور لڑکیوں کی تاریخ معلومات پڑھانے کی نیت سے لکھی گئی ہے،خاص کر مسلمان بچوں کی واقفیت کا مجھے زیادہ خیال تھا"۔

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लेखक: परिचय

 

शायद यह जानकर बहुतों को हैरत होगी कि उर्दू अदब की तारीख़ में  चिश्ती सिलसिले के एक ऐसे बुज़ुर्ग अदीब ,विद्वान,इतिहासकार,पत्रकार और निबंधकार का नाम महत्वपूर्ण ढंग से दर्ज है जिसने अपार श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण के जीवन पर  आधारित “कृष्ण बीती” के नाम से न सिर्फ़ किताब लिखी बल्कि तमाम हिन्दू तीर्थों की यात्रा साधुओं के लिबास में की, वेदांत का दर्शन सीखा और “तीर्थ यात्रा” शीर्षक से यात्रा व्रतांत लिखा जो किसी कारण से प्रकाशित न हो सका. वह यह कहते थे कि” हिन्दुस्तान के श्रद्धेय श्री रामचंद्रजी, श्रीकृष्ण और महात्मा बुद्ध की जीवनी पढ़ने , उनकी जीवनशैली पेर विचार करने  और उनके उपदेशों पर विचार न्यायपूर्ण दृष्टि डालने से साफ़ मालूम होता है कि उनलोगों के वही हालात थे जो सैयेदना हज़रत इब्राहिम ,ईसा और मूसा के थे और वही शिक्षा थी जिसका ज़िक्र बारबार क़ुरान शरीफ़ में आया है.”

उन्होंने ही गौ हत्या के विरुद्ध १२९१ में “तर्के क़ुर्बानी गौ” शीर्षक एक पुस्तिका लिखी जिसमें मज़हबी और तार्किक दलीलों से साबित किया कि गौ हत्या उचित नहीं है और न ही इस्लामी कृत्य है.उन्होंने मुसलमान बादशाहों के कर्म के ढंग और उनके फरमानों की रौशनी में यह स्पष्ट किया कि बाबर ,अकबर और जहाँगीर आदि ने  गाय की क़ुर्बानी को बंद कर दिया था.उन्होंने विभिन्न उलेमा  और देश व समाज के विद्वानों के हवाले से लिखा है कि  गौ रक्षा इंसानों की ही रक्षा है.

राष्ट्रीय सहमति और एकता के उस अलमबरदार का नाम ख्वाजा हसन निज़ामी है  जिन्हें अदबी दुनिया मुसव्वेरे फ़ित्रत के नाम से  जानती है.

ख्वाजा हसन निज़ामी(असल नामसय्यद अली हसन) की पैदाइश बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन दिल्ली में 1879 में हुई.उनके पिता हाफ़िज़ सय्यद आशिक़ अली निज़ामी थे,माता सय्येदा चहेती बेगम थीं.उनका शजरा हज़रत अली मुर्तज़ा से मिलता है.

ख्वाजा साहेब ने आरम्भिक शिक्षा बस्ती निज़ामुद्दीन में प्राप्त की, उनके शिक्षकों में मौलाना इस्माइल कान्धेल्वी,मौलाना यहिया कान्धेल्वी जैसी महान विभूतियाँ थीं.उन्होंने मौलाना रशीद अहमद गंगोही  के मदरसा रशीदिया गंगोह से दीक्षा पाई थी.अठारह साल की उम्र में ही उनकी शादी सय्येदा हबीब  बानो से हुई जो उनके सगे चाचा सय्यद माशूक़ अली की पुत्री थीं .

ख्वाजा हसन निज़ामी का बचपन बहुत तकलीफ़ों में गुज़रा .उनके पिता जिल्दसाज़ी करके  अपने घर का ख़र्च चलाते थे .ख़ुद ख्वाजा साहेब ने दरगाह के दर्शनार्थियों के जूतों की हिफ़ाज़त करके घर वालों की मदद की गुज़रबसर के  लिए ख्व जा साहेब ने फेरी लगा कर किताबें और दि ल्ली की ईमारतों के फोटो भी बेचे.

ख्वाजा हसन निज़ामी का सम्बंध सूफ़ी परिवार से था इसलिए उन्होंने भी परिवारिक परम्परा के अनुसार ख्वाजा ग़ुलाम फ़रीद के मुरीद हो गए.उनके देहावसान के बाद हज़रत पीर मेहर अली शाह गोल्ड्वी के मुरीद हुए.वे दरगाह से सम्बद्ध थे मगर पीर ज़ादगी उन्हें पसंद न थी इसलिए अर्थोपार्जन का दूसरा रास्ता निकाला. वे पत्रकारिता से सम्बद्ध हो गये.उन्होंने ‘हल्क़ाए निज़ामुल मशाइख ‘ स्थापितं किया जिसके अधीन ‘निज़ामुल मशाइख’ के नाम से एक रिसाला जारी किया. अपने एक दोस्त एहसानुल हक़ के साप्ताहिक ‘तौहीद’ के सम्पादन की ज़िम्मेदारी निभाई फिर अपना रिसाला ‘मुनादी’ भी निकाला.

ख्वाजा हसन निज़ामी के दुशमनों की तादाद बहुत ज़्यादा थी .उनके बारे में दुशमनों ने यह मशहूर कर रखा था कि वह अंग्रेज़ों के जासूस हैं.उनके ख़िलाफ़ अख़बारों में भी लिखा गया.उनके ‘मुनादी’ के ख़िलाफ़ साप्ताहिक 'सुनादी' निकाला गया.

ख्वाजा हसन निज़ामी ने उन विरोधों की परवाह नहीं की और निरंतर मेहनत करते रहे,और उस मेहनत ने उन्हें शोहरत और प्रसिद्धि दिलाई. उन्होंने अपना एक भी लम्हा बर्बाद नहीं किया.सदैव किताबों की रचना व सम्पादन में व्यस्त रहते.उन किताबों पर ही उनकी आमदनी निर्भेर थी.किताबों के कारोबार से हलाल की रोटी खाते थे इसलिए नज्र ओ नियाज़ से दूरी बनाये रखी थी.उन्होंने एक दवाख़ाना खोल रखा था जिसमें दवाइयाँ तैयार की जातीं. उन्होंने एक उर्दू सुरमा भी तैयार किया था जिसका इश्तेहार अपने रिसाला ‘मुनादी’में देते हुए उन्होंने लिखा था कि “आज मैंने एक सुरमा तैयार किया है.मैंने उस सुरमे का नाम उर्दू सुरमा इसलिए चुना है कि उर्दू ज़बान भी  आँखों को ऐसा ही रोशन करती है.”

ख्वाजा हसन निज़ामी उर्दू अदब की तारीख़ में कई बातों से याद रखे जायेंगे.रोज़नामचा को विधिवत एक विधा की मान्यता उन्होंने ही दी.क़लमी चेहरों का सिलसिला  उन्होंने ही शुरू किया.एक पत्रकार के रूप में उनका नाम बहुत बुलंद है कि उनके संरक्षण और सम्पादन में सबसे ज़्यादा दैनिक ,साप्ताहिक अख़बार और मासिक प्रकाशित हुए.निजामुल मशाइख, दैनिक रईयत,मासिक दीन दुनिया,मुनादी,मासिक आस्ताना उन सारे अख़बारों व रिसालों से ख्वाजा हसन निज़ामी की किसी न किसी तरह सम्बद्धता रही है.

ख़्वाजा  हसन निज़ामी एक इतिहासकार भी थे.1857 के इन्क़लाब पर उनकी गहरी नज़र थी.उन्होंने इस सन्दर्भ में जो किताबें लिखी हैं वह इतिहास का अनमोल ख़ज़ाना हैं.बेगमात के आंसू,ग़दर के अख़बार ,ग़दर के फ़रमान,बहादुरशाह ज़फ़र का मुक़द्दमा,ग़दर की सुबह व शाम ,मुहासेरा देहली के ख़ुतूत उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं.

ख़्वाजा हसन निज़ामी ने हर विषय पर  लिखा,शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसपर उनका कोई लेख न मिले.उन्होंने आपबीती भी लिखी ,सफ़रनामे भी लिखे,सफ़रनामा हिजाज़ मिस्र व शाम,सफ़रनामा हिन्दोस्तान,सफ़रनामा पाकिस्तान उल्लेखनीय पुस्तकें हैं.”गांधी नामा” और “यज़ीद नामा” भी उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों में से हैं.

ख़्वाजा हसन निज़ामी ने निबंध भी लिखे.झींगुर का जनाज़ा,गुलाब तुम्हारा कीकर हमारा,मुर्ग़ की अज़ान,मच्छर, मक्खी, उल्लू उनके मशहूर निबंध हैं.

ख़्वाजा हसन निज़ामी का देहांत 13 जुलाई 1955 में हुआ.बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन में उनकी क़ब्र है.


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