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अबू अली हुसैन इब्न अब्दुल्लाह इब्न सीना, जिन्हें पश्चिम में एविसेना (Avicenna) के नाम से जाना जाता है और जिन्हें “अश-शैख़-रईस” (महान शिक्षक/नेता) की उपाधि दी गई थी, इस्लामी सभ्यता के महानतम चिंतकों और मध्यकालीन विश्व के सबसे प्रभावशाली दार्शनिकों और चिकित्सकों में गिने जाते हैं।
इब्न सीना एक सच्चे बहुश्रुत विद्वान थे। उनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने लगभग 450 ग्रंथ लिखे, जिनमें से लगभग 240 आज भी उपलब्ध हैं। इनमें से लगभग 150 ग्रंथ दर्शनशास्त्र पर और लगभग 40 चिकित्सा-विज्ञान पर आधारित हैं।
उनकी दो सर्वाधिक प्रसिद्ध और विश्वविख्यात कृतियाँ “अल-शिफ़ा” और “अल-क़ानून फ़ि-अत-तिब” हैं –
किताब अल-शिफ़ा (चिकित्सा नहीं, बल्कि “उपचार की पुस्तक” अर्थ में) – यह एक महान दार्शनिक एवं वैज्ञानिक विश्वकोश है जिसमें तर्कशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान, गणित और तत्वमीमांसा जैसे विषय शामिल हैं।
अल-क़ानून फ़ि-अत-तिब (चिकित्सा के नियम / Canon of Medicine) – यह एक व्यापक चिकित्सा-विश्वकोश है जिसे इस्लामी तथा यूरोपीय विश्वविद्यालयों में सत्रहवीं शताब्दी तक मानक पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाया जाता रहा। इस ग्रंथ का लैटिन सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और इसने पश्चिमी चिकित्सा-विज्ञान की प्रगति पर गहरा प्रभाव डाला। 1973 में इसे न्यूयॉर्क में पुनः प्रकाशित किया गया।
इब्न सीना की विद्वत्ता केवल दर्शन और चिकित्सा तक सीमित नहीं थी। उन्होंने खगोलशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगोल, भूविज्ञान, मनोविज्ञान, इस्लामी धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, गणित, भौतिकी तथा कविता पर भी लेखन किया। इसी कारण उन्हें “चिकित्सा-जगत का सूर्य” भी कहा जाता है।
उनके ज्ञान और योगदान ने न केवल ग्रीक और इस्लामी परंपराओं का समन्वय किया, बल्कि विज्ञान और चिंतन के नए आयाम भी स्थापित किए, जिससे पूर्व और पश्चिम दोनों के विद्वानों को प्रेरणा मिली।
इस प्रकार इब्न सीना विश्व बौद्धिक धरोहर के एक उज्ज्वल स्तंभ हैं – ऐसी विभूति जिनकी कृतियों ने सभ्यताओं के बीच सेतु का कार्य किया और विज्ञान व दर्शन के विकास को पीढ़ियों तक दिशा दी।
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