बेदिल हैदरी के शेर
हम तुम में कल दूरी भी हो सकती है
वज्ह कोई मजबूरी भी हो सकती है
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भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे
बेचते फिरते हैं गलियों में ग़ुबारे बच्चे
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गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया
रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
जितना हंगामा ज़ियादा होगा
आदमी उतना ही तन्हा होगा
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मेरे अंदर का पाँचवाँ मौसम
किस ने देखा है किस ने जाना है
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दुश्मन मुझ पर ग़ालिब भी आ सकता है
हार मिरी मजबूरी भी हो सकती है
मरने के बा'द ख़ुद ही बिखर जाऊँगा कहीं
अब क़ब्र क्या बनेगी अगर घर नहीं बना
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टैग : घर
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कहीं इंतिहा की मलामतें कहीं पत्थरों से अटी छतें
तिरे शहर में मिरे ब'अद अब कोई सर-फिरा नहीं आएगा
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हो गया चर्ख़-ए-सितमगर का कलेजा ठंडा
मर गए प्यास से दरिया के किनारे बच्चे
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ये दिल जो मुज़्तरिब रहता बहुत है
कोई इस दश्त में तड़पा बहुत है
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