aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "Men"
सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थीरुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया
जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार थाउस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाहीखुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
शेर मर्दों से हुआ बेश-ए-तहक़ीक़ तहीरह गए सूफ़ी ओ मुल्ला के ग़ुलाम ऐ साक़ी
वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैंआदमी बे-नज़ीर होते हैं
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमीफिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्तेहर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमीजिस को भी देखना हो कई बार देखना
मैं ने देखा है जो मर्दों की तरह रहते थेमस्ख़रे बन गए दरबार में रहने के लिए
न साहबान-ए-जुनूँ हैं न अहल-ए-कश्फ़-ओ-कमालहमारे अहद में आईं कसाफ़तें कैसी
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