aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khizar"
उम्र-ए-ख़िज़र की उस को तमन्ना कभी न होइंसान जी सके जो मोहब्बत में चार दिन
रहबर-ए-ख़िज़्र-ओ-हादी-ए-इल्यासमुझ को वो रहनुमा दिया तू ने
मिरी मंज़िलें कहीं और हैं मिरा रास्ता कोई और हैहटो राह से मिरी ख़िज़्र-जी मिरा रहनुमा कोई और है
जहाँ मिट जाए सई-ए-दीद ख़िज़्रआबाद-ए-आसाइशब-जेब-ए-हर-निगह पिन्हाँ है हासिल रहनुमाई का
ऐ 'ज़ौक़' किसी हमदम-ए-देरीना का मिलनाबेहतर है मुलाक़ात-ए-मसीहा-ओ-ख़िज़र से
ले चलो लिल्लाह कोई ख़िज़्र-ए-मीना के हुज़ूरआलम-ए-गुम-गश्तगी की राह बतलाए मुझे
न रहनुमा है न मंज़िल दयार-ए-उल्फ़त मेंक़दम उठाते ही ख़िज़्र-ए-शिकस्ता-पा तो मिला
सोचूँ तमाम दिन दर-ए-अक़्दस को मैं 'क़मर'आते ही नींद गुम्बद-ए-ख़ज़रा दिखाई दे
वो क्यूँ बताए हम को दिल-ए-गुम-शुदा का हालपूछें जनाब-ए-ख़िज़्र तो रस्ता बताए ज़ुल्फ़
आब-ए-हयात ख़िज़्र-ओ-सिकन्दर को चाहिएसाक़ी फ़क़त शराब के हैं इक पिया से हम
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