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तंज़-ओ-मज़ाह
(पेशानी पर पसीने की बूँदें नज़र आने लगती हैं। चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है। शेफ़्ता जल्दी ...
सिराज अहमद अलवी
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रेखाचित्र
शीदां उठ कर तेज़ क़दमों से अंदर चली जाती है। निज़ामी कराहती हुई नूर जहाँ को पुचकारता है, फि...
सआदत हसन मंटो
तंज़-ओ-मज़ाह
लिहाज़ा जब वो मेरे कप में शक्कर डालते वक़्त अख़लाक़न पूछते हैं, एक चमचा (ये एक लफ़्ज़ नहीं पढ...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
कहानी
“अच्छा!”, लड़की ने दवा की शीशी और चमचा उसे दिया। चमचा नौजवान के हाथ से छूट कर फ़र्श पर गिर ग...
क़ुर्रतुलऐन हैदर
कहानी
कीकू की माँ के लबों पर तबस्सुम नहीं रहा। सिर्फ़ उसका साया रह गया। हल्की सी सुर्ख़ी से इसका...
राजिंदर सिंह बेदी
लेख
घरों के इ’लावा बा’ज़ बाज़ार के दुकानदारों ने किसी एक चीज़ में ऐसा नाम पाया कि आज तक उनकी मिस...
शाहिद अहमद देहलवी
रेखाचित्र
तक़सीम से पहले अनार कली में एक कैलाश होटल हुआ करता था। उस में बार भी थी मुक़द्दमात के सिलसिल...
सआदत हसन मंटो
बच्चों की कहानी
शीला ने हैरत से ग़ुस्ल-ख़ाने में इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो देखा कि परी अपना एक ख़ूबसूरत दस्तान...