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ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
ख़ुदा-लगती कहे ऐ 'शाद' जो इस पैर के हक़ में
यक़ीं समझो दुआ-गो भी ये देरीना उसी का है
शाद अज़ीमाबादी
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ग़ज़ल
ग़लत है इश्क़ में ऐ बुल-हवस अंदेशा राहत का
रिवाज इस मुल्क में है दर्द-ओ-दाग़-ओ-रंज-ओ-कुलफ़त का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को
न था मा'लूम यूँ रोएगा दिल शाम-ओ-सहर तुझ को
हबीब जालिब
नज़्म
मर्सिया-ए-देहली 4
'दाग़'-ओ-'मजरूह' को सुन लो कि फिर इस गुलशन में
न सुनेगा कोई बुलबुल का तराना हरगिज़