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उद्धरण
सआदत हसन मंटो
नज़्म
हिण्डोला
कि जिस्म तोड़ दिए जाएँ उन के ताकि मिले
चुराने वालों को ख़ैरात माघ-मेले की
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
क्या हुआ वाइज़ करे है शोर जूँ तब्ल-ए-तही
वो सर-ए-बे-मग़ज़ गोया कांसा-ए-तम्बूर है