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ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
तबस्सुम इत्र जैसा है हँसी बरसात जैसी है
वो जब भी बात करती है तो बातें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
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नज़्म
हसन कूज़ा-गर (2)
तो मैं कहता हूँ के लो आज नहा कर निकला!
वर्ना इस घर में कोई सेज नहीं इत्र नहीं है
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश
तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला