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शायरी के अनुवाद
काग़ज़ की कोरी रीझ है चुप-चाप देखती
गीतों का लफ़्ज़ लफ़्ज़ भटकता है क़ाफ़िला
शिव कुमार बटालवी
नज़्म
ऐ री चिड़िया
अपनी पत पर यूँ मत रीझ ख़बर है बाहर
इक इक डाइन आँख की पुतली तेरी ताक में है
मजीद अमजद
ग़ज़ल
कोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यूँ रीझ गया
देखी चितवन बाँकी छब वाले बहतेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
कुल्लियात
सर नीचे कर लेता था तलवार चलाते हम पर वे
रीझ गए ख़ूँ-रेज़ी में अपनी उस के फिर शरमाने पर
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
चिड़ मुझ को तुझे रीझ के तकरार बहुत की
ख़ुश रह कि ख़ुशामद तिरी ऐ यार बहुत की
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
कुल्लियात
तमाम रीझ-बचाव हैं अब तो फिर पस-ए-मर्ग
कहा किन्हों ने तो क्या 'अज़्ज़ा-इस्मुहू उस्ताद
मीर तक़ी मीर
शेर
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
गाहक जो रीझ जाए तो क़ीमत फ़ुज़ूँ करूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सुख़न हैं हल्क़ा-ए-मिसरा में ज्यूँ दुर-ए-शहवार
है ये रिजा कि क़दर-दाँ के कान से गुज़रे