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नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
वो तीर हो सागर की रुत छाई हो फागुन की
फूलों से महकती हो पुर्वाई घने बन की
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दरवाज़ा खुला रखना
सीने से घटा उट्ठे आँखों से झड़ी बरसे
फागुन का नहीं बादल, जो चार-घड़ी बरसे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
होली की बहारें
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रात और रेल
एक सरकश फ़ौज की सूरत अलम खोले हुए
एक तूफ़ानी गरज के साथ डराती हुई