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ग़ज़ल
इस ज़वाल-ए-अंजुमन में 'आरज़ू' तू ही बता
किस को कह दूँ बज़्म-आराई किसे आवाज़ दूँ
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
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ग़ज़ल
कह दिया उन को मिरी आँखों ने सब कुछ 'अंजुम'
वर्ना इक ताज़ा ग़ज़ल हम भी सुनाते जाते
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
ये मेरी ग़ज़लों में जो रंग इज़्तिराब का है
इसी से निकलेगी 'अंजुम' क़रार की ख़ुशबू
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
जब उस ने पूछा कि कैसा मिज़ाज है 'अंजुम'
जिगर में दर्द वो उट्ठा कि हम बता न सके
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या
पूछे कोई सवाल क्या लाएँगे हम जवाब क्या
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
ये जो 'अंजुम' की है बर्बादी का क़िस्सा मशहूर
हाए वो शामत-ए-आमाल की मारी मैं थी