aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تفتیش"
देखने कौन हमें आता हैढूँडने किस को इधर जाते हैं
क़यामत-ख़ेज़ जिस की इब्तिदा होफिर उस की इंतिहा का पूछना क्या
मसरूफ़ ढूँडने में है कोई शिकार कोबैठा है कोई अपना यहाँ जाल डाल कर
ہوئی یک دگر پھر تو تفتیش حاللگے ہونے آپس میں قال و مقال
आज कल शहर में जिसे देखो, पूछता फिर रहा है कि ग़ालिब कौन है? उसकी वलदीयत, सुकूनत और पेशे के मुताल्लिक़ तफ़तीश हो रही है। हमने भी अपनी सी जुस्तजू की। टेलीफ़ोन डायरेक्टरी को खोला। उस में ग़ालिब आर्ट स्टूडियो तो था लेकिन ये लोग महरुख़ों के लिए मुसव्विरी सीखने...
हम मह्व-ए-नाला-ए-जरस कारवां रहे पस ख़ाक अज़ तोद-ए-कलां बर्दार पर अमल करते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब पर क़लम साफ़ करता हूँ। उनके सवानिह हयात बा’ज़ हज़रात बड़ी तहक़ीक़-ओ-तफ़तीश के बाद किताबी सूरत में पेश कर चुके हैं फिर भी मेरा ख़्याल है कि इन सुतूर में जो कुछ मुख़्तसिरन पेश किया...
मैंने कहा, “यही कि तुम उससे मोहब्बत करते हो।” जमील संजीदा होगया, “यार, मुझसे कभी कहा न जाता... तुम सोचो न अगर ये सुन कर वो मेरे मुँह पर थप्पड़ दे मारती कि जनाब आपको इसका क्या हक़ हासिल है, तो मैं क्या जवाब देता। ज़्यादा से ज़्यादा मैं कह...
फ़रमाया, “क्या मतलब?” अर्ज़ किया, “दो-चार दिन मूंग की दाल खा लेता हूँ तो उर्दू शायरी समझ में नहीं आती और तबीयत बेतहाशा तिजारत की तरफ़ माइल होती है। इस सूरत में ख़ुदा-न-ख़्वास्ता तंदुरुस्त हो भी गया तो जी के क्या करूँगा?”...
मज़ीद-तफ़तीशمَزِید تَفتِیش
زیادہ دریافت ، دوبارہ چھان بین کرنا
Qatal : Zabta-e-Tafteesh
इनामुर्रहमान
Quran-e-Kareem Mein Uloom-e-Falkiyat Aur Faza Se Zameen Ki Tafteesh
सय्यद वक़ार अहमद
इस्लामियात
Tafteeshi Khabar Nigari
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पत्रकारिता
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अननोन एडिटर
शब्द-कोश
Taftishi Khabar Nigari
कोई मेरी मुख़बिरी करता रहेगा और फिरजुर्म की तफ़तीश करने बे-ख़बर आ जाएगा
"हाँ ये ग़लती हुई।" "तुमने कभी सच्चे दिल से कहा। महज़ महराजिन लेने के लिए कहा, तुम्हारे दिल में कभी मेरे आराम का ख़याल आया ही नहीं। तुम तो ख़ुश थे कि अच्छी लौंडी मिल गई है एक रोटी खाती है और चुप-चाप पड़ी रहती है। इतनी सस्ती लौंडी और...
मैंने अज़राह-ए-तफ़न्नुन पूछा, “क्या जानते हैं आप?” “साला... हम क्या नहीं जानते... तुम अमृतसर का रहने वाला है... कश्मीरी है... यहां अख़बारों में काम करता है... तुमने बिसमिल्लाह होटल के दस रुपये देने हैं, इसीलिए तुम उधर से नहीं गुज़रते। भिंडी बाज़ार में एक पान वाला तुम्हारी जान को रोता...
चचा जान, आपके हाँ बड़ी ख़ूबसूरत औरतें हैं, मैंने आपका एक फ़िल्म देखा था... क्या नाम था उसका... हाँ याद आ गया, ''बे-दंग ब्यूटी।'' ये फ़िल्म देख कर मैंने अपने दोस्तों से कहा था कि चचा जान इतनी ख़ूबसूरत टाँगें कहाँ से इकट्ठी कर लाए हैं। मेरा ख़्याल है क़रीब-क़रीब...
“तुम हमेशा शक किया करती हो... अब तो मेरी अक़्ल के पत्थर हट गए। वो लड़की नहीं कोई मर्द है इसीलिए मैं तफ़तीश की ग़रज़ से उसे अपने साथ ले आया था, ख़ैर छोड़ो ठंडा पानी तो पिलाओ, एक मन बर्फ़ तुमने मंगवाई थी।” “उसका सब पानी मैंने ग़ुस्लख़ाने में...
वज्ह-ए-शिकस्त-ए-जंग की तफ़तीश फिर कभीपहले सिपाहियों की अयादत का वक़्त है
بادل ناخواستہ میں اٹھا اور نیچے گیا۔ شاکر صاحب کے دوست راجہ طالب علی صاحب تشریف لائے تھے، ان سے میرا تعارف کرایا گیا۔ تھوڑی دیر کے بعد وہ تشریف لے گئے اور مجھے بھی فرصت ملی اور میں نے یکسو ہوکر لکھنا شروع کیا۔ تھوڑی ہی دیر ہوئی تھی...
अम्मी से ये उसकी पहली मुलाक़ात थी। जब वो उसे फलों और बिस्कुटों वाली चाय पिलाकर घर के दरवाज़े तक छोड़ने आईं तो बावर्चीख़ाने से चुराई हुई चवन्नी मसऊद की जेब में अँगारे की तरह दहकने लगी और वो जल्दी से सलाम कर के उनके घर से बाहर निकल गया।...
गोया कोई अनदेखी आँख उनको हमेशा देखती रहती थी इस तरह की अलामतों के बारे में ये कहना दुरुस्त नहीं है कि ये ग़ैर शऊरी या ख़ुदकार अवामिल के ज़रिए ही वुजूद में आ सकती हैं क्योंकि हक़ीक़त ये है कि नज़्म या नावल या पूरे कुल्लियात में पाए जानेवाले...
उसके अंदाज़ से मालूम होता था जैसे वो किसी ग़लती का इज़ाला करने की कोशिश कर रहा है। पुलिस पहुँची। उसने देखा हिंदू कॉलोनी, दादर में गान्धर्व दास, जिसने इश्तिहार दिया था, मौजूद है और साफ़ कहता है कि मैं बिकना चाहता हूँ। अगर इसमें कोई क़ानूनी रंजिश है तो...
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