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नज़्म
एक दरख़्वास्त
ज़िंदगी के नाम पर बस इक इनायत चाहिए
मुझ को इन सारे जराएम की इजाज़त चाहिए
अहमद नदीम क़ासमी
तंज़-ओ-मज़ाह
“सदक़ा दीजिए, जुमेरात की रात भारी होती है।” “पानी हलक़ से उतर जाता है?”...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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तंज़-ओ-मज़ाह
सिराज अहमद अलवी
तंज़-ओ-मज़ाह
"मैंने दूध दान से क्रीम निकाली", उन्होंने जवाब दिया। मैंने पूछा, "शक्करदान से क्या निकला?"...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
आगही
हिकायात-ए-शीरीन-ओ-तल्ख़ उन की, उन के दरख़्शाँ जराएम
जो सफ़्हात-ए-तारीख़ पर कारनामे हैं, उन के अवामिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हवेली
रहज़नों का क़स्र-ए-शूरा क़ातिलों की ख़्वाब-गाह
खिलखिलाते हैं जराएम जगमगाते हैं गुनाह