aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "خطرہ"
अब नहीं कोई बात ख़तरे कीअब सभी को सभी से ख़तरा है
लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को...
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा हैतुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा हैदिल को अब दिल-दही से ख़तरा है
क्या कहूँ जान को बचाने मैं'जौन' ख़तरा है जान जाने का
रौशनी और प्रकाश के आंशिक या पूर्ण अभाव को अंधेरा कहा जाता है । अर्थात वो समय या स्थिति जिस में प्रकाश या रौशनी न हो । अंधेरा अपने स्वभाविक अंदाज़ में भी उर्दू शायरी में आया है और जीवन के नकारात्मकता का रूपक बना है । लेकिन ये शायरी में अपने रूपक का विस्तार भी है कि कई जगहों पर यही अंधेरा आधुनिक जीवन की चकाचौंध के सामने सकारात्मक रूप में मौजूद है । अंधेरे को रूपक के तौर पर शायरी ने अपना कर कई नए अर्थ पैदा किए हैं ।
होश-मंदी के मुक़ाबिले में बे-ख़बरी शायरी में एक अच्छी और मुसबत क़दर के तौर पर उभरती है। बुनियादी तौर पर ये बेख़बरी इन्सानी फ़ित्रत की मासूमियत की अलामत है जो हद से बढ़ी हुई चालाकी और होशमंदी के नतीजे में पैदा होने वाले ख़तरात से बचाती है। हमारी आम ज़िंदगी के तसव्वुरात तख़लीक़ी फ़न पारों में किस तरह टूट-फूट से गुज़रते हैं इस का अंदाज़ा इस शेरी इन्तिख़ाब से होगा।
ख़तराخطرہ
danger, fear, risk
ख़त-ए-रहخط رہ
line on way
Udhar Khatra Hai
हुमायूँ इक़बाल
Ghadeer-e-Khum Aur Khutba-e-Ghadeer
सय्यद इब्न-ए-हसन नजफ़ी
Khutba-e-Nikah
मुजीबुल्लाह नदवी
इस्लामियात
Aal-e-Ahmad Suroor
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
व्याख्यान
Alam-e- Arbi Ke Liye Sabse Bada Khatrah
मौलाना अबुल हसन नदवी
Khutba-e-Harmain-ul-Moazzameen
इब्न-ए-नबाता
Khutba Jamia Osmania
नवाब सर निज़ामत जंग
संस्मरण
Khutba-e-Sadarat
सूफ़ी सय्यद शाह अहमद मुहीउद्दीन
Gumbad-e-Khizra Ke Aas Paas
अख़तर मधुपुरी
नात
Gul-e-Khazra
जुंबिश ख़ैराबादी
Khutba-e-Iftatahiya
सय्यद हामिद
Khitta-e-Paak Uch
शहाब देहल्वी
Fareb-e-Khitta-e-Gul
तरन्नुम रियाज़
उपन्यास
Khutba-e-Sadarat Tahreeri
अबुल कलाम आज़ाद
Murqqa-e-Alam
सय्यद शर्फ़ुद्दीन क़ादरी
भूगोल / ज्योग्राफी
ख़ैरियत अपनी लिखा करता हूँअब तो तक़दीर में ख़तरा भी नहीं
कहते हैं कि नौ अप्रैल की शाम को डाक्टर सत्यपाल और डाक्टर किचलू की जिला वतनी के अहकाम डिप्टी कमिशनर को मिल गए थे। वो उनकी तामील के लिए तैयार नहीं था। इसलिए कि उसके ख़याल के मुताबिक़ अमृतसर में किसी हैजानख़ेज बात का ख़तरा नहीं था। लोग पुरअम्न तरीक़े...
आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग सेइतनी बारिश एक शोले को बुझाने के लिए
मेरा बे-साख़्ता-पन उन के लिए ख़तरा हैसाख़्ता लोग मुझे क्यूँ न मुसीबत समझें
पथरीली ज़मीन पर औंधे या सीधे लेटे रहते थे और जब हुक्म मिलता था एक दो फ़ायर कर देते थे। दोनों के मोर्चे बड़ी महफ़ूज़ जगह थे। गोलियां पूरी रफ़्तार से आती थीं और पत्थरों की ढाल के साथ टकरा कर वहीं चित्त हो जाती थीं। दोनों पहाड़ियां जिन पर...
आप के हँसने से ख़तरा और भी बढ़ जाएगाइस तरह तो और आँखों की नमी बढ़ जाएगी
मैं कहूँ किस तरह ये बात उस सेतुझ को जानम मुझी से ख़तरा है
हाथ आँखों पे रख लेने से ख़तरा नहीं जातादीवार से भौंचाल को रोका नहीं जाता
कम-हिम्मती ख़तरा है समुंदर के सफ़र मेंतूफ़ान को हम दोस्तो ख़तरा नहीं कहते
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