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तंज़-ओ-मज़ाह
सय्यद आबिद अली आबिद
लेख
اس خانہ ہستی سے گزر جاؤں گا بے لوث سایہ ہوں فقط نقش پہ دیوار نہیں ہوں...
अब्दुल माजिद दरियाबादी
ग़ज़ल
ख़ुम-ख़ाना इश्क़ का है पीर-ए-मुग़ाँ की सोहबत
रिंदान-ए-मस्त देखा मख़मूर का तमाशा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ग़नीमत तुम इसे समझो कि इस ख़ुम-ख़ाने में यारो
नसीब इक-दम दिल-ए-ख़ुर्रम हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया
ख़िश्त-ए-ख़ुम-ख़ाना है याँ अपने तो सर का तकिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
होश का दावा है बेहोशों को ज़ेर-ए-आसमाँ
ख़ुम-नशीं मिस्ल-ए-फ़लातूँ सब हैं इस ख़ुम-ख़ाना में