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ग़ज़ल
है कितनी ख़ुद-ग़रज़ मक्कार दुनिया हम ने देखा है
ख़ुद अपनी ही तबाही का तमाशा हम ने देखा है
Meem Sheen Najmi
ग़ज़ल
ख़ुद-ग़र्ज़ हो के अपनों के ग़म-ख़्वार ही रहो
इस पार आ गए हो तो इस पार ही रहो
अब्दुल्लाह मिन्हाज ख़ान
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ग़ज़ल
ख़ुद-सर था ख़ुद-ग़रज़ भी था वो बदमिज़ाज भी
ठुकरा चुका है इस लिए उस को समाज भी
राना मज़हरी देहलवी
नज़्म
ख़ुद-ग़रज़ दोस्त
ख़ुद-ग़रज़ की दोस्ती अच्छी नहीं
वो फँसा देगा तुम्हें हज़रत कहीं
फ़ैज़ी फ़तेहाबादी
ड्रामा
सआदत हसन मंटो
कहानी
بھابھی کچھ دیر خاموش رہتی ہیں پھر کہتی ہیں: ’’تم مرد لوگ بہت بے حوصلہ ہوتے ہو اور خود غرض بھی۔‘‘...