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नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
गोदी में खेलती हैं इस की हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिन के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिन्दू और मुसलमान
रश्क-ए-जिनाँ बनाओ हिन्दोस्ताँ को मिल कर
ख़ून-ए-जिगर से सींचो इस गुलिस्ताँ को मिल कर
उफ़ुक़ लखनवी
नज़्म
माँ
सुकूँ के फूल हर इक दिल में माँ खिलाती है
वो उजड़े घर को भी रश्क-ए-जिनाँ बनाती है
मक़सूद अहमद मक़सूद
ग़ज़ल
दिल के ख़ाने में कशिश ख़ूब मिली है रौशन
उस की महफ़िल का समाँ रश्क-ए-जिनाँ हो कि न हो
जाफ़र साहनी
नज़्म
महात्मा गाँधी
था ख़िज़ाँ का दौर-दौरा ख़ेमा-ज़न सय्याद थे
तेरे दम से बन गया सेहन-ए-चमन रश्क-ए-जिनाँ
साबिर अबुहरी
नज़्म
शाइ'र के दिल की तमन्ना
वो मुल्क है दुनिया से अच्छा जो रश्क-ए-जिनाँ कहलाता है
आराम-ओ-राहत की चीज़ें सब जिस में इंसाँ पाता है
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
ग़ज़ल
वो जान-ए-आरज़ू मिल जाएगा जिस की तमन्ना है
'शिफ़ा' ये बज़्म-ए-दिल बन जाएगी रश्क-ए-जिनाँ इक दिन