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ग़ज़ल
सन्नाटे के लम्स बदन में सिहरन पैदा करते हैं
ज़ेहन में खुलने लगते हैं फिर बंद-ए-क़बा आवाज़ों के
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सन्नाटे के लम्स बदन में सिहरन पैदा करते हैं
ज़ेहन में खुलने लगते हैं फिर बंद-ए-क़बा आवाज़ों के
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