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ग़ज़ल
सर-ए-पिंदार से पा-ए-जुनूँ का रब्त ग़ाएब है
ये पीढ़ी बरसर-ए-पैकार है ऐसा नहीं लगता
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
आप क्या नक़द-ए-दो-आलम से ख़रीदेंगे इसे
ये तो दीवाने का सर है सर-ए-पिंदार पे ख़ाक
इरफ़ान सिद्दीक़ी
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ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
नज़्म
एक मुकालिमा
اک مرغ سرا نے يہ کہا مرغ ہوا سے
پردار اگر تو ہے تو کيا ميں نہيں پردار!
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चल रहा है जो यहाँ तू बड़े पिंदार के साथ
सर न आ जाए ज़मीं पर कहीं दस्तार के साथ