aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "شب_وصل"
शब-ए-वस्ल घबरा के कहना किसी काबता दीजिए हम से क्या कीजिएगा
शब-ए-वस्ल की क्या कहूँ दास्ताँज़बाँ थक गई गुफ़्तुगू रह गई
दी मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहरहाए कम्बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
शब-ए-वस्ल क्या मुख़्तसर हो गईज़रा आँख झपकी सहर हो गई
शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबसये शिकवे अबस ये शिकायत अबस
शब-ए-वस्लشب وصل
night of union
मिलन की रात
Shab-e-Wasl
अब्दुल हलीम शरर
शब-ए-वस्ल हम मुख़्तसर देखते हैंइधर आँख झपकी सहर देखते हैं
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गईनहीं होते होते सहर हो गई
शब-ए-वस्ल क्या जाने क्या याद आयावो कुछ आप ही आप शर्मा रहे हैं
हौसला कोई शब-ए-वस्ल निकलने न दियादर्द-ए-दिल ने मुझे इक दम भी सँभलने न दिया
शब-ए-वस्ल ऐसी खिली चाँदनीवो घबरा के बोले सहर हो गई
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं कीहाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैंये नाले बहुत मुँह लगाए गए हैं
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझेतू सामने है और तिरा इंतिज़ार है
न पूछो शब-ए-वस्ल क्या हो रहा हैगले में हैं बाँहें गिला हो रहा है
क्या जल्द गुज़रती हैं शब-ए-वस्ल की घड़ियाँइक हिज्र का दिन है कि गुज़रता ही नहीं है
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