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ग़ज़ल
मैं पहरों घर में पड़ा दिल से बात करता हूँ
जब उस के शक्ल-ओ-शमाइल से बात करता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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लेख
अब्र साँ गर्द जो उठी फर्स्-ए-क़ातिल की बर्क़ की तरह मैं पाबंद-ए-सलासिल दौड़ा...
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
पा-ए-तलाश पहली ही मंज़िल में रह गया