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शेर
ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं
अश्क को ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होने देते
अबरार किरतपुरी
शेर
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-अलम से दिल है परेशाँ इस दिल को समझाए कौन
आँखों से आँसू गिरते हैं ख़ूँ इन को रुलवाए कौन
सय्यद मंज़र हसन दसनवी
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ग़ज़ल
तुम्हें नाज़ ज़ब्त-ए-अलम पर है 'क़ैसर'
मुझे अश्क आँखों में भरने का ग़म है
राणा ख़ालिद महमूद कैसर
ग़ज़ल
ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं
अश्क को ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होने देते