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हास्य
कितने ही ग़ालिब-ए-दौरान हमें गर्दानते हैं
'नूर'-भय्या हूँ कि 'ताबाँ' सभी पहचानते हैं
पॉपुलर मेरठी
ग़ज़ल
वो इम्तियाज़-ए-हुस्न है मअ'नी ओ लफ़्ज़ का
'वहशत' को जिस ने 'ग़ालिब'-ए-दौरान बना दिया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
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नज़्म
नग़्मा-ए-देहली
देखो निगह-ए-शौक़ से देहली के नज़ारे
तहज़ीब की जन्नत है ये जमुना के किनारे
रिफ़अत सरोश
नज़्म
सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्द
सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्द
यक़ीनन आप फ़ख़रुद्दीन भी नाज़-ए-उमम भी हैं
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
'ग़ालिब'
तुम ये कहते हो कि क़ाइल नहीं अस्लाफ़ का मैं
सच है ये दौर भी अस्लाफ़ परस्ती का नहीं