aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "فحش"
अगर मैं किसी औरत के सीने का ज़िक्र करना चाहूँगा तो उसे औरत का सीना ही कहूँगा। औरत की छातियों को आप मूंगफ़ली, मेज़ या उस्तुरा नहीं कह सकते... यूँ तो बाअज़ हज़रात के नज़दीक औरत का वुजूद ही फ़ोह्श है, मगर उसका क्या ईलाज हो सकता है?...
"पता नहीं जी, अब्बा जी को पता है।" "अच्छा" उन्होंने सर हिला कर कहा, "तो अब्बा जी से पूछा करना! जो पूछता नहीं उसे किसी भी बात का इल्म नहीं होता।"...
मीरज़ा साहिब खाना खा रहे थे। चिठ्ठी रसान (डाकिया) ने एक लिफ़ाफ़ा लाकर दिया। लिफ़ाफ़े की बे रब्ती और कातिब के नाम की अजनबीयत से उनको यक़ीन हो गया कि ये किसी मुख़ालिफ़ का वैसा ही गुमनाम ख़त है जैसे पहले आचुके हैं। लिफ़ाफ़ा पास बैठे शागिर्द को दिया कि...
मैं तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और सोसाइटी की चोली क्या उतारुंगा जो है ही नंगी... मैं उसे कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करता, इस लिए कि ये मेरा काम नहीं, दर्ज़ियों का है। लोग मुझे सियाह क़लम कहते हैं, मैं तख़्ता-ए-सियाह पर काली चाक से नहीं लिखता, सफ़ेद चाक इस्तेमाल करता हूँ...
अफ़साना लिखने के मुआमले में वो नख़रे ज़रूर बघारता है लेकिन मैं जानता हूँ, इसलिए... कि इसका हमज़ाद हूँ... कि वो फ़राड कर रहा है... उसने एक दफ़ा ख़ुद लिखा था कि उस की जेब में बेशुमार अफ़साने पड़े होते हैं। हक़ीक़त उस के बरअक्स है। जब उसे अफ़साना लिखना...
फ़ुहश बकनाفُحش بَکنا
गालियाँ देना, गंदी बातें करना
Manto Ke Fahesh Afsane
सआदत हसन मंटो
अफ़साना
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
रौशनी कम तपिश ज़्यादा
अली इक़बाल
मज़ामीन / लेख
Arsh-o-Farsh
जोश मलीहाबादी
काव्य संग्रह
अर्श-ओ-फ़र्श
फ़र्श-ए-नज़र
रतन पंडोरवी
Tayen Tayen Fish
परवेज़ यदुल्लाह मेहदी
गद्य/नस्र
Ghalat Ha-e-Fahish
हसन अमीद
शब्द-कोश
Farsh Se Arsh Tak
रघुनाथ सहाय
शाइरी
मेरा ख़्याल है कि कोई भी चीज़ फ़ोह्श नहीं, लेकिन घर की कुर्सी और हांडी भी फ़ोह्श हो सकती है अगर उनको फ़ोह्श तरीक़े पर पेश किया जाए।...
कोई अफ़साना या अदब-पारा फ़ोह्श नहीं हो सकता। जब तक लिखने वाले का मक़सद अदब-निगारी है। अदब ब-हैसीयत-ए-अदब के कभी फ़ोह्श नहीं होता।...
آپ سے مجھے ایک اور بھی گلہ ہے۔ آپ ہمارے دریاؤں کا پانی بندکر رہے ہیں۔ اور آپکی دیکھا دیکھی آپکی راج دھانی کے پبلیشر میری اجازت کے بغیر میری کتابیں دھڑا دھڑ چھاپ رہے ہیں،یہ بھی کوئی شرافت ہے۔۔۔ میں تو یہ سمجھاتھا کہ آپکی وزارت میں ایسی کوئی...
उसने चोरी चोरी कई मर्तबा महमूदा की तरफ़ देखा। उसकी हमउम्र लड़कियां सब चहचहा रही थी। मुस्तक़ीम से बड़े ज़ोरों पर छेड़ख़ानी हो रही थी, मगर वो अलग थलग, खिड़की के पास घुटनों पर ठोढ़ी जमाए, ख़ामोश बैठी थी। उसका रंग गोरा था। बाल तख़्तियों पर लिखने वाली सियाही के...
और पिछले दिनों बंबई में, जब उसकी बच्ची सीमा को काली खांसी हुई तो वो रातें जागती थी, हर वक़्त खोई खोई रहती थी। ममता माँ बनने के साथ ही कोख से बाहर निकलती है। इस्मत परले दर्जे की हट धरम है। तबीयत में ज़िद है बिल्कुल बच्चों की...
जमील ने दिल में सोचा ये कमबख़्त मोतियों का दलाल बला का पीने वाला है... मेरी प्यास और सुरूर की सारी ब्रांडी चढ़ा गया, ख़ुदा करे इसे मोतियाबिंद हो। मगर जूँ ही आख़िरी दौर के पैग ने जमील के पेट में अपने क़दम जमाए, उसने नटवरलाल को माफ़ कर दिया...
मैंने उसको ज़रा और ख़ूबसूरत बना कर कहा, “मसऊद चीज़ नहीं... चीज़ सी।” शायर आदमी था भड़क उठा, “वल्लाह क्या बात पैदा की है। चीज़ नहीं चीज़ सी... सो मियां तांगे वाले चीज़ और चीज़ सी में जो फ़र्क़ है। इसका ध्यान रखना।” तांगे वाला ख़ामोश रहा।...
मंटो की बातें बड़ी दिलचस्प होती थीं। उन्हें हमेशा ये एहसास रहता था कि मैं ही सबसे अच्छा लिखने वाला हूँ, इसलिए वो अपने आगे किसी को गरदानते न थे। ज़रा किसी ने दून की ली और मंटो ने अड़ंगा लगाया। ख़राबी-ए-सेहत की वजह से मंटो की तबीयत कुछ चिड़...
अब कुत्ते भौंकने लगे.... नारंगियाँ फ़र्श पर लुढ़कने लगीं। कोठी के फ़र्श पर उछलीं, हर कमरे में कूदीं और उछलती-कूदती बड़े बड़े बाग़ों में भागने दौड़ने लगीं... कुत्ते उनसे खेलते और आपस में लड़ते झगड़ते रहते। जाने क्या हुआ, उन कुत्तों में दो ज़हर खा के मर गए जो बाक़ी...
गाने बजाने का आशिक़, होली के दिनों में महीना भर तक गाता, सावन में मल्हार, और भजन तो रोज़मर्रा का शुग़्ल था। निडर ऐसा कि भूत और पिशाच के वजूद पर उसे आलिमाना शकूक थे। लेकिन जिस तरह शेर और पलंग भी सुर्ख़ शोलों से डरते हैं उसी तरह सुर्ख़...
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