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ग़ज़ल
न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की
किसी के सामने मैं बन गया तस्वीर पत्थर की
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
कहो किस तरह हों क़ाइल सुकून-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर के
ज़रा जुम्बिश हुई पैदा हुए आसार महशर के
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हाथ रखते ही था हाल-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर आईना
दस्त-ए-नाज़ुक है हसीनों का मुक़र्रर आईना
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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नज़्म
जहान-ए-नौ
मशक़्क़तें ही लिखी हैं मिरे मुक़द्दर में
नहीं सुकून कभी मेरे क़ल्ब-ए-मुज़्तर में
नईम सिद्दीक़ी
नज़्म
कोहर के उस पार
जो कि तेरी हसीन आँखों में
जो कि मेरे भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर में