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ग़ज़ल
क़ल्ब-ए-मोमिन की अजब शान है अल्लाह अल्लाह
सर झुकाता हूँ तो अनवार नज़र आते हैं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हो न मायूस कि है फ़त्ह की तक़रीब शिकस्त
क़ल्ब-ए-मोमिन का मिरी जान निखरना है यही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
समस्त
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ग़ज़ल
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
वो चौखट मोम की चौखट है या मेरी जबीं पत्थर
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जो शाहों को नहीं हासिल वो जौहर पास रखता है
सुकून-ए-क़ल्ब हर शहज़ादा-ए-इफ़्लास रखता है