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ग़ज़ल
यूँ भी होता है मुदावा-ए-ग़म-ए-महरूमी
जब्र-ए-सय्याद भी है हसरत-ए-परवाज़ भी है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
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ग़ज़ल
ख़िरामिंदा हैं मयख़ाने अगरचे तेरी आँखों में
यहाँ से भी मुदावा-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ नहीं मिलता
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
जब मुदावा-ए-ग़म-ए-हिज्र का इम्काँ ही नहीं
फिर भला मेरे बिखर जाने पे हैरत कैसी
हसनैन असग़र तबस्सुम
ग़ज़ल
अब सिवा इस के मुदावा-ए-ग़म-ए-दिल क्या है
इतनी पी जाएँ कि हर रंज-ओ-मेहन को भूलें