aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ٹھونک"
मतबा मोहम्मदी मोहम्मदाबाद, टोंक
पर्काशक
दिगम्बर जैन समाज, टोंक
नदीम अकेडमी, टोंक
अदबी बोर्ड अमीरगंज, टोंक
चंदन कंपनी, टोंक
मद्रसा-तुन-निसा, टोंक
क़ाफ़िला पब्लिकेशंस, टोंक, राजस्थान
मौलाना अबुल-कलाम आज़ाद अरबिक एण्ड परशियन इन्स्टीटयूट, टोंक
अदबिसतान-ए-साइब, टोंक
कुछ अर्से से पेशावर और दीगर शहरों में सुर्ख़ पोशों की तहरीक जारी थी। मंगू ने इस तहरीक को अपने दिमाग़ में रूस वाले बादशाह और फिर नए क़ानून के साथ ख़लत-मलत कर दिया था। इसके इलावा जब कभी वो किसी से सुनता कि फ़ुलां शहर में बम साज़ पकड़े गए हैं, या फ़ुलां जगह इतने आदमियों पर बग़ावत के इल्ज़ाम में मुक़द्दमा चलाया गया है तो उन तमाम वाक़ियात को नए क़ानून का पेशख़ैमा...
इस बस्ती के रहने वालों की सरपरस्ती और उनके मुरब्बियाना सुलूक की वज्ह से इसी तरह दूसरे तीसरे रोज़ कोई न कोई टट-पुंजिया दुकानदार कोई बज़्ज़ाज़, कोई पंसारी, कोई नेचाबंद, कोई नान-बाई मंदे की वज्ह से या शह्र के बढ़ते हुए किराए से घबरा कर उस बस्ती में आ पनाह लेता। एक बड़े मियाँ अत्तार जो हिक्मत में भी किसी क़दर दख़्ल रखते थे, उनका जी शह्र की गुंजान आबादी और हकीमों और दवाख़ानों की इफ़रात से जो घबराया तो वो अपने शागिर्दों को साथ लेकर शह्र से उठ आए और इस बस्ती में एक दुकान किराए पर ले ली। सारा दिन बड़े मियाँ और उनके शागिर्द दवाओं के डिब्बों, शर्बत की बोतलों और मुरब्बे, चटनी, अचार के बुवयामों को अलमारियों और ताकों में अपने-अपने ठिकाने पर रखते रहे। एक ताक़ में तिब्ब-ए-अकबर, क़राबादीन क़ादरी और दूसरी तिब्बी किताबें जमा कर रख दीं। किवाड़ों की अन्दरुनी जानिब और दीवारों के साथ जो जगह ख़ाली बची वहाँ उन्होंने अपने ख़ास-उल-ख़ास मुजर्रिबात के इश्तिहारात सियाह रौशनाई से जली लिख कर और दफ़्तियों पर चिपका कर आवेज़ाँ कर दिए। हर रोज़ सुब्ह को बेस्वाओं के मुलाज़िम गिलास ले ले कर आ मौजूद होते और शर्बत-ए-बुज़ूरी, शर्बत-ए-बनफ़्शा, शर्बत-ए-अनार और ऐसे ही और नुज़हत बख़्श, रूह अफ़्ज़ा शर्बत-ओ-अर्क़, ख़मीरा गाव-ज़बाँ और तक़वियत पहुँचाने वाले मुरब्बे मअ-वर्क़-हाय-नुक़रा ले जाते।
लड़का थर थर काँपता हुआ, आकर आंगन में खड़ा हो जाता है, दोनों बच्चियां घर में छुप जाती हैं कि ख़ुदा जाने क्या आफ़त नाज़िल होने वाली है, छोटा बच्चा खिड़की से चूहे की तरह झांक रहा है, आप जामें से बाहर हैं, हाथ में छड़ी है, मैं भी वो ग़ज़बनाक चेहरा देख कर पछताने लगती हूँ कि क्यों उनसे शिकायत की। आप लड़के के पास जाते हैं, मगर बजाय इसके कि छड़ी से उसकी मरम्मत करें...
मुझे माहिम जा कर अपने चंद रिश्तेदारों से मिलना था। इसके इलावा मुझे एक रेडियो आर्टिस्ट समीना का पता लेना था। (बाद में कृश्न-चंदर से जिसके मरासिम रहे)। उस लड़की को मैंने ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली से बंबई भेजा था। क्योंकि उसको फ़िल्म में काम करने का शौक़ था। मैंने उसे पृथ्वी राज और बृजमोहन के नाम तआरुफ़ी ख़त लिख कर दे दिए थे और अब मैं ये मालूम करना चाह...
अलगू चौधरी ने फ़रमाया, “शेख़ जुम्मन, हम और तुम पुराने दोस्त हैं। जब ज़रूरत पड़ी है, तुमने मेरी मदद की है और हम से भी जो कुछ बन पड़ा है, तुम्हारी ख़िदमत करते आए हैं। मगर इस वक़्त न तुम हमारे दोस्त हो, न हम तुम्हारे दोस्त। ये इन्साफ़ और ईमान का मुआमला है। ख़ाला जान ने पंचों से अपना हाल कह सुनाया। तुमको भी जो कुछ कहना हो कहो।”जुम्मन एक शान-ए-फ़ज़ीलत से उठ खड़े हुए और बोले, “पंचों मैं ख़ाला जान को अपनी माँ की जगह समझता हूँ और उनकी ख़िदमत में कोई कसर नहीं रखता। हाँ, औरतों में ज़रा अन-बन रहती है। इसमें मैं मजबूर हूँ। औरतों की तो आदत ही है। मगर माहवार रुपया देना मेरे क़ाबू से बाहर है। खेतों की जो हालत है वो किसी से छिपी नहीं। आगे पंचों का हुक्म सर और माथे पर है।”
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Tonk Mein Urdu Ka Farogh
सय्यद मोहम्मद असग़र अली
“एक पुरअसरार क़ब्रिस्तानी सिसकी हवा में लरज़ती है।” (झिर्री में से)
रूप कुमारी ख़ामोश हो गई। अब ये हक़ीक़त उसकी सारी तल्ख़ियों के साथ तस्लीम करनी पड़ेगी कि राम दुलारी उससे ज़्यादा ख़ुशनसीब है। इससे मुज़िर नहीं। तमसख़ुर या तहक़ीर से वो अपनी तंगदिली के इज़हार के सिवा और किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकती। उसे बहाने से राम दुलारी के घर जाकर असलियत की छानबीन करनी पड़ेगी। अगर राम दुलारी वाक़ई लक्ष्मी का बरदान पा गई है तो वो अपनी ...
चिल्ला ग़म ठोंक उछलता हो तब देख बहारें जाड़े कीतन ठोकर मार पछाड़ा हो और दिल से होती हो कुश्ती सी
हरनाम कौर ने पत्थर उठाया और तान कर उसको मारा। निहाल सिंह ने चोट की पर्वा न की और आगे बढ़ कर उसकी कलाई पकड़ ली लेकिन वो बिजली की सी तेज़ी से मच्छी की तरह तड़प कर अलग हो गई और ये जा वो जा। निहाल सिंह को जैसे किसी ने चारों शाने चित्त गिरा दिया। शिकस्त का ये एहसास और भी ज़्यादा हो गया, जब ये बात सारे गांव में फैल गई।निहाल सिंह ख़ामोश रहा। उसने दोस्तों दुश्मनों सबकी बातें सुनीं पर जवाब न दिया। तीसरे रोज़ दूसरी बार उसकी मुडभेड़ गुरुद्वारा साहिब से कुछ दूर बड़की घनी छाओं में हुई। हरनाम कौर ईंट पर बैठी अपनी गुरगाबी को कीलें अंदर ठोंक रही थी। निहाल सिंह को पास देख कर वो बिदकी, पर अब के उसकी कोई पेश न चली।
کہنے لگے، نہیں، ایک آدھ ایسا بھی نکل آئے گا جو مولوی بھی ہوگا اور پڑھائے گا بھی۔ جناب شمس العلماء مولوی ضیاء الدین خاں صاحب ایل ایل ڈی ( یہ الفاظ بہت طنز سے کہے) کے پاس جاؤ، ا ن کو فرصت بھی ہے اور عالم بھی ہیں۔ میں نے کہا کہ اس کے ساتھ وہ پنجاب یونیورسٹی کے ممتحن بھی کہنے لگے۔ میں اس کا مطلب نہیں سمجھا۔ یہاں تو جلے بیٹھے ہی تھے، جامع مسجد کی سیڑ...
वो अकेला था, बिल्कुल अकेला... खजूर के उस दरख़्त के मानिंद जो किसी तपते हुए रेगिस्तान में तन्हा खड़ा हो, मगर वो इस तन्हाई से कभी न घबराया था। दरअसल वो कभी तन्हा रहता ही न था।जब मैं काम में मशग़ूल होता हूँ तो वही मेरा साथी होता है और जब मैं इससे फ़ारिग़ हो जाता हूँ तो मेरे दूसरे ख़यालात-ओ-अफ़्क़ार मेरे गिर्द-ओ-पेश जमा हो जाते हैं। मैं हमेशा अपने दोस्तों के जमगठे में रहता हूँ।
बुक स्टॉल वाला बोला।"क्या आप इंटरवल में जा रही हैं।"
कभी कभी सलाहू नाराज़ हो जाता। ये वक़्त दूदे पहलवान के लिए बड़ी आज़माईश का वक़्त होता था। दुनिया से बेज़ार हो जाता। फ़क़ीरों के पास जा कर तावीज़ गंडे ले लेता। ख़ुद को तरह तरह की जिस्मानी तकलीफ़ पहुंचाता। आख़िर जब सलाहू मौज में आकर उसे बुलाता तो उसे ऐसा महसूस होता कि दोनों जहान मिल गए हैं। दूदे को अपनी ताक़त पर नाज़ नहीं था, उसे ये भी घमंड नहीं था कि वो छुरी मारने के फ़न में यकता है। उसको अपनी ईमानदारी और अपने ख़ुलूस पर भी कोई फ़ख़्र नहीं था, लेकिन वो अपनी इस बात पर बहुत नाज़ां था कि लंगोट का पक्का है। वो अपने दोस्तों, यारों को बड़े फ़ख़्र-ओ-इम्तियाज़ से बताया करता था कि उसकी जवानी में सैंकड़ों मर्द-औरतें आईं, चलितरों के बड़े बड़े मंत्र उस पर फूंके मगर वो... शाबाश है उसके उस्ताद को, लंगोट का पक्का रहा।
अफ़्सोस कि इक शख़्स को दिल देने से पहलेमटके की तरह ठोंक बजा कर नहीं देखा
اگر یہ فیصلہ کر لیا جائے اور ہر طرف مان بھی لیا جائے کہ نقاد اور تخلیقی فنکار میں حاکم ومحکوم کا رشتہ ہے۔ یا حاکم ومحکوم نہ سہی، نقاد بہر حال تخلیقی فنکار کا رہنما، اس کا مشیر، اس کو اچھے برے سے آگاہ کرنے او ر آگاہ رکھنے والا، اس کو گمراہی سے بچانے والا اور آئندہ کی خبر دینے والا ہے، تو بھی یہ ممکن نہ ہوگا کہ ایک نقاد، یا سارے نقاد مل کر کوئی سن...
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