aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िनमैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी सेरात के पिछले-पहर रोज़ जगाती है हमें
अ'जीब ज़िंदगी थी उनकी। घर में मिट्टी के दो चार बर्तनों के सिवा कोई असासा नहीं। फटे चीथड़ों से अपनी उर्यानी को ढाँके हुए दुनिया की फ़िक़्रों से आज़ाद। क़र्ज़ से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते मगर कोई ग़म नहीं। मिस्कीन इतने कि वसूली की मुतलक़ उम्मीद न होने पर लोग उन्हें कुछ न कुछ क़र्ज़ दे देते थे। मटर या आलू की फ़स्ल में खेतों से मटर या आलू उखाड़ लाते ...
ये पिछले इश्क़ की बातें हैंजब आँख में ख़्वाब दमकते थे
रेत अभी पिछले मकानों की न वापस आई थीफिर लब-ए-साहिल घरौंदा कर गया ता'मीर कौन
२०२२ ख़त्म हुआ आप लोगों ने उर्दू ज़बान-ओ -अदब और शाइरी से भरपूर मुहब्बत का इज़हार किया है । इस कलेक्शन में हम उन 10 नज़्मों को पेश कर रहे हैं जो रेख़्ता पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गईं हैं।
ग़ज़ल विभिन्न विषयों पर एक साथ बात करने के लिए जानी जाती है। हर शेर अपने आप में आज़ाद होता है। लेकिन कुछ ग़ज़लें इस तरह कही जाती हैं जिन का हर शेर पिछले शेर के मानी में इज़ाफ़ा करता है। ऐसी ग़ज़लों को मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं। यहाँ ऐसी ही चुनिंदा ग़ज़लें जमा की गई हैं, पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए।
अहमद फ़राज़ पिछली सदी के प्रख्यात शायरों में शुमार किए जाते हैं। अपने समकालीन में बेहद सादा और अद्वितीय शैली की वजह से उनकी शायरी ख़ास अहमियत की हामिल है। रेख़्ता फ़राज़ के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर पेश कर रहा है जिसने पाठकों पर जादू ही नहीं किया बल्कि उनके दिलों को मोह लिया । इन शेरों का चुनाव बहुत आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी फ़राज़ के बहुत से लोकप्रिय शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में आपकी राय का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
पिछलेپچھلے
behind, after, back
Pichchle Panne
गुलज़ार
अफ़साना
Pichhle Mausam Ka Phool
मज़हर इमाम
काव्य संग्रह
Dar Khule Pichle Pahar
अब्दुल अहद साज़
पिछले पहर
जाँ निसार अख़्तर
Charagh Pichle Baras
एजाज़ अहमद
पिछली रात
फ़िराक़ गोरखपुरी
संकलन
Pichhle Paher Ka Khwab
राज खेती
ग़ज़ल
Pichle Pahar
Pichhle Pahar
Pichhli Rut Ka Sath Tumhara
अतीक़ुर्रहमान सफ़ी
Pichhli Peet Ke Karne
ख़ुर्शीद अकरम
नज़्म
Pichle Mausam Ki Awazein
अनजुम अब्बासी
शायरी तन्क़ीद
Pichli Rat
पिछले सालों की फ़सलों का गुड़ लाए थेआँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था
पहले देखने वालों की राल टपकती थी, अब उनके क़दमों पर सर पटख़ने की तमन्ना जागने लगी। जब सुब्ह-सवेरे नमाज़-ए-फ़ज्र के बा'द क़ुरआन की तिलावत करतीं तो उनके चेहरे पर हज़रत मर्यम का तक़द्दुस और फ़ातिमा ज़ुहरा की पाकीज़गी तारी हो जाती। वो और भी कमसिन और कुँवारी लगने लगतीं।मामूँ की क़ब्र और पास खिसक आती, और वो उन्हें मुँह भर-भर के कोसते और गालियाँ देते कि भाँजों-भतीजों के बा'द वो जिनों और फ़रिश्तों को वर्ग़ला रही हैं, चिल्ले खींच-खींच कर जिन क़ाबू में कर लिए हैं, उनसे जादू की बूटियाँ मँगाकर खाती हैं।
अशोक जब पहली बार महल में गया तो महाराजा ग ने कई घंटे सर्फ़ करके उसको अपने तमाम नवादिर दिखाए। ये चीज़ें जमा करने में महाराजा को सारी दुनिया का दौरा करना पड़ा था। हर मुल्क का कोना कोना छानना पड़ा था। अशोक बहुत मुतअस्सिर हुआ। चुनांचे उसने नौजवान महाराजा ग के ज़ौक़-ए-इंतिख़ाब की ख़ूब दाद दी।एक दिन अशोक घोड़ों के टप लेने के लिए महाराजा के पास गया तो वो डार्क रुम में फ़िल्म देख रहा था। उसने अशोक को वहीं बुलवा लिया। स्केटन मिलीमीटर फ़िल्म थे जहाँ महाराजा ने ख़ुद अपने कैमरे से लिए थे। जब प्रोजेक्टर चला तो पिछली रेस पूरी की पूरी पर्दे से दौड़ गई। महाराजा का घोड़ा इस रेस में वन आया था।
मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्डे के वो तमाम कोचवान जिन को ये जानने की ख़्वाहिश होती थी कि दुनिया के अंदर क्या हो रहा है उस्ताद मंगू की वसीअ मालूमात से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे।पिछले दिनों जब उस्ताद मंगू ने अपनी एक सवारी से स्पेन में जंग छिड़ जाने की अफ़वाह सुनी थी तो उसने गामा चौधरी के चौड़े कांधे पर थपकी दे कर मुदब्बिराना अंदाज़ में पेशगोई की थी, “देख लेना गामा चौधरी, थोड़े ही दिनों में स्पेन के अंदर जंग छिड़ जाएगी।”
कि दाना अन्दराँ हैराँ ब-मांदजब हम डेढ़ महीने तक शख़्सियत और ‘हॉस्टल की ज़िंदगी पर उसका इनहसार’ उन दोनों मज़मूनों पर वक़्तन फ़वक़्तन अपने ख़यालात का इज़हार करते रहे, तो एक दिन वालिद ने पूछा,
दी मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहरहाए कम्बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
लड़के सब से ज़्यादा ख़ुश हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा, वो भी दोपहर तक। किसी ने वो भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी इनका हिस्सा है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे, बच्चों के लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज वो आ गई। अब जल्दी पड़ी हुई है कि ईदगाह क्यूँ नहीं चलते। उन्हें घर की फ़िक़्रों से क्या वास्ता? सेवइयों के लिए घर में दूध और शकर, मेवे हैं या नहीं, ...
“वो बात नहीं, रामलाल! ऐसे ही, मेरा जी अच्छा नहीं... बहुत पी गई।”राम लाल के मुँह में पानी भर आया, “थोड़ी बची हो तो ला... ज़रा हम भी मुँह का मज़ा ठीक करलें।”
साईकल होगा, कहीं और चला जाएगाढल चुकी रात उतरने लगा खंबों का बुख़ार
पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँअब के बरस भी इस के सिवा कुछ नहीं किया
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