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कहानी
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
मुझ में पैवस्त हो तुम यूँ कि ज़माने वाले
मेरी मिट्टी से मिरे बा'द निकालेंगे तुम्हें
अभिषेक शुक्ला
कहानी
बाले ने उसके कांधे पर ज़ोर से धप्पा मारा, “क्यों पहलवान, कैसा रहा दंगल?” भोलू ख़ामोश रहा।...
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शाम
जिस ने आफ़ाक़ पे फैलाया है यूँ सेहर का दाम
दामन-ए-वक़्त से पैवस्त है यूँ दामन-ए-शाम