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हास्य
मुझे खाने के फ़ौरन बाद ही फिर भूक लगती है
कोई तो ये बताए 'ख़्वाह-मख़ाह' मुझ को हुआ क्या है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
हास्य
मुझे खाने के फ़ौरन बा'द ही फिर भूक लगती है
कोई तो ये बताए 'ख़्वाह-मख़ाह' मुझ को हुआ क्या है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
कब गुल है हवा-ख़्वाह सबा अपने चमन का
वा जुम्बिश-ए-दम से है रफ़ू ज़ख़्म-ए-कुहन का
ममनून निज़ामुद्दीन
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शेर
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं आता हूँ और बाद-ए-सबा मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
क्यूँ न मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मर्सिया
سینہ میں فقط خار جگر دوز رہے گا
کوئی بھی ہوا خواہ نہ دلسوز رہے گا