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ग़ज़ल
ज़मीन मय-कदा-ए-अर्श-ए-बरीं मा'लूम होती है
ये ख़िश्त-ए-ख़ुम फ़रिश्ते की जबीं मा'लूम होती है
रियाज़ ख़ैराबादी
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नअत
जिस का मुश्ताक़ है ख़ुद अर्श-ए-बरीं आज की रात
उम्म-ए-हानी के वो घर में है मकीं आज की रात
माहिर-उल क़ादरी
ग़ज़ल
साज़-ए-हस्ती की सदा अर्श-ए-बरीं तक पहुँचे
ऐ ख़ुशा जिंस-ए-अमानत कि अमीं तक पहुँचे
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
नाला-ए-जान-ए-ख़स्ता-जाँ अर्श-ए-बरीं पे जाए क्यों
मेरे लिए ज़मीन पर साहब-ए-अर्श आए क्यों
अमजद हैदराबादी
ग़ज़ल
सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
कमाल-ए-औज पर है हुस्न-ए-आलमगीर-ए-मय-ख़ाना
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
अब वो फिरते हैं इसी शहर में तन्हा लिए दिल को
इक ज़माने में मिज़ाज उन का सर-ए-अर्श-ए-बरीं था
हबीब जालिब
ग़ज़ल
मिरे अन्फ़ास की हर ज़र्ब थी कारी से कारी-तर
करम फ़रमा हुआ अर्श-ए-बरीं आहिस्ता आहिस्ता