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नज़्म
गंगा
ऐ आब-रूद-ए-गंगा उफ़ री तिरी सफ़ाई
ये तेरा हुस्न दिल-कश ये तर्ज़-ओ-दिल-रुबाई
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
ऐ आब-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आब-रूद-ए-ज़ीस्त के कुछ घूँट ज़हरीले भी हों
मैं ने कब चाहा था हर क़तरा मुझे इक्सीर हो
राग़िब अख़्तर
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नज़्म
ज़वाल-ए-अहद-ए-तमन्ना
न उन की आग से गुलशन कोई ज़ुहूर में आए
न उन के पाँव रगड़ने से रूद-ए-आब हो जारी
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
कुल्लियात
रूद-ए-दैर के पानी से या आब-ए-चाह से उस जा के
वास्ते ताअ'त-ए-कुफ़्र के मैं दोनों वक़्त नहाउँगा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बरहमन आब-ए-गंगा शैख़ कौसर ले उड़ा उस से
तिरे होंटों को जब छूता हुआ 'मुल्ला' का जाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
बरहमन आब-ए-गंगा शैख़ कौसर ले उड़ा इस से
तिरे होंटों को जब छूता हुआ 'मुल्ला' का जाम आया