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ग़ज़ल
हया इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-दिल की इक तदबीर होती है
नज़र झुकती है वो जिस में कोई तहरीर होती है
अर्शद बिजनौरी
ग़ज़ल
सई-ए-बे-हासिल थी दिल की कोशिश-ए-इख़्फ़ा-ए-राज़
कर गई रुस्वा निगाहों की परेशानी मुझे
मेला राम वफ़ा
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ग़ज़ल
दिल को पैदा करके फ़ितरत ख़ुद ग़ज़ब में पड़ गई
महव है इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-दहर की तदबीर में
बेख़ुद मोहानी
ग़ज़ल
इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-ग़म का जो ज़िंदाँ में था ख़याल
ज़ंजीर भी हिलाई मगर ग़ुल न हो सका
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
अज़-बस-कि ख़ून दिल का खाता है जोश हर दम
मुश्किल हुआ है हम को इख़्फ़ा-ए-राज़ करना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बहुत कोशिश तो की इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-इश्क़ की मैं ने
किसी के हिज्र में लेकिन फ़ुग़ाँ तक बात पहुँची है
साक़िब कानपुरी
ग़ज़ल
मिरी क़ुदरत से अब इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-इश्क़ बाहर है
कि रंग आने लगा है आँसुओं में ख़ून-ए-हसरत का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
गुलों से सीख ले इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-आशिक़ी कोई
ख़लिश काँटों की जो दिल में है चेहरे से अयाँ क्यों हो
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
ये जान कर भी कि लंदन पे 'राज' है उस का
तू मेरी मान ले उस पर यूँ इख़्तियार न कर