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ग़ज़ल
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
बशीर बद्र
कहानी
सआदत हसन मंटो
मर्सिया
दरिया पे अभी घर गए थे बाप तुम्हारे
प्यारे के चचा जाँ इन्हें लेने को सुधारे