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नज़्म
मता-ए-ग़ैर
कौन जाने मिरे इमरोज़ का फ़र्दा क्या है
क़ुर्बतें बढ़ के पशेमान भी हो जाती हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दुआ
आइए अर्ज़ गुज़ारें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दा भर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
अज़्म बहज़ाद
नज़्म
शोर-ए-बरबत-ओ-नय
आज़ाद हैं अपने फ़िक्र ओ अमल भरपूर ख़ज़ीना हिम्मत का
इक उमर है अपनी हर साअत इमरोज़ है अपना हर फ़र्दा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
क़ैद-ए-तन्हाई
कासा-ए-दिल में भरी अपनी सुबूही मैं ने
घोल कर तलख़ी-ए-दीरोज़ में इमरोज़ का ज़हर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हम लोग
मुज़्महिल साअत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से
याद-ए-माज़ी से ग़मीं दहशत-ए-फ़र्दा से निढाल