aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कटोरी"
राजकुमार कोरी राज़
born.1971
शायर
मोहम्मद रफ़ी कलोरी
संपादक
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नीक्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
"पाडी।" उन्होंने सूखी रोटी के मुहीत नेवाले को गले में जकड़ते हुए कहा। और जन्नो ने घबरा कर उन्हें कटोरी पकड़ा दी। "जल्दी से खा लो। कटोरी माँझ के यहीं धर देना। हमें कुट्टी करने को पड़ी है।" वो ग़ुरूर से अहकाम सादिर करती उठी।...
एक कटोरी धूप कीमैं एक ही साँस में पी लूँ
झन झन ठन ठन चूने वाली कटोरी बजती जाएएक पतिंगा दीपक पर जल जाए दूसरा आए
“हुँह...” माँ ने दिए की बे-बिज़ा’त रौशनी में सर हिलाते और चिढ़ाते हुए कहा। “किस का पता नहीं चलेगा...” घमंडी को पता चल गया कि माँ से किसी बात का छुपाना अबस है। माँ जो चौबीस साल एक शराबी की बीवी रही है। घमंडी का बाप जब भी दरवाज़े पर...
कटोरीکٹوری
bowl,
“बात बिगड़ गई, काले ख़ाँ”, आख़िर मैंने ख़ुद से कहा। और सच कहा। दूसरे दिन सवेरे-सवेरे मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया। मेरे घर से ईजादी क़फ़स की एक गंगा-जमुनी कटोरी बरामद हुई थी।...
उसकी आवाज़ भर्रा गई और वो वहीं फ़र्श पर लेट गया। मैंने देखा, उसकी आँखों के गोशे नम हो गए थे, वो माज़ी और हाल में ब-यक वक़्त ज़िंदा रहता था। सांस लेता था। कुछ देर ख़ामोशी रही फिर वो तड़प कर उठ बैठा। "अजी महाबली अकबर, हम कच्छवाहा राजपूतों...
क़सीदा क्या लिखूँ 'सागर' तुम्हारी शान-ओ-शौकत कायहाँ तो बादशाहत भी कटोरी थाम लेती है
कोई गा दे मीठी लोरी सजनमेरी भर दे नैन कटोरी सजन
नौ बज चुके थे। मीर साहब के एक हममुश्रब दोस्त मियां फ़ज्जू ख़ां ने पहले तो “कसम्बे” की कटोरी पेश की। ये पी चुके तो चाय की प्याली सामने रख दी, और बोले, “हाँ जनाब मीर साहब, शुरू कर दीजिए।” मीर साहब, “बहुत मुनासिब” कह कर दो ज़ानू बैठ गए,...
तिलमिला कर संदल के तेल से भरी कटोरी उठा कर रहमत ने दूर फेंक दी, और उस बुलंदी पर पहुंच गया जहाँ तक एक मर्द पहुँच सकता है और जिसके बाद “ज़रा हौर ऊप्पर” कहने सुनने की ज़रूरत ही बाक़ी नहीं रहती।...
मुझे तुम दूध चावलचाँद की मीठी कटोरी में खिलाती थीं
माँ ने हाथ हिला कर कहा, "बस ये उसी शैतान की कारस्तानी है। न जाने महमूद के तोते से उसे क्या बैर है। और भाई होते हैं, आपस में प्यार और मुहब्बत से रहते हैं। इस लड़के पर तो महमूद को देखकर भूत सवार हो जाता है। रज़ीया...! ले, इसे...
जिस से बनती थाल कटोरीगागर पीतल ताँबा
जाल-साज़ी की कटोरी और दाने लोभ केकह रहे हैं कुछ परिंदे ऐ शिकारी कब तलक
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books