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शेर
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
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ग़ज़ल
देखा गया न मुझ से मआनी का क़त्ल-ए-आम
चुप-चाप मैं ही लफ़्ज़ों के लश्कर से कट गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ये क़त्ल-ए-ख़िज़ाँ पर हैं जवानान-ए-चमन शाद
हर सम्त गुल-ओ-लाला उड़ाते हैं निशाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
तंज़-ओ-मज़ाह
“अच्छा तो फ़साहत हुसैन साहिब आप अर्ज़ी लाए हैं नौकरी के लिए?” “जी लाया हूँ ये लीजिए।”...