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शेर
आस्तानों की क़दम-बोसी में पिन्हाँ ख़ून-ए-सर
और वुफ़ूर-ए-शौक़ में ये सर हो ख़म कुछ और है
अख़लाक़ अहमद आहन
ग़ज़ल
दश्त में चल कि हर इक ख़ार-ए-बयाबाँ को 'निसार'
जूँ हिना कब से तमन्ना-ए-क़दम-बोसी है
मोहम्मद अमान निसार
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ग़ज़ल
फिर बगूले हैं रवाँ बहर-ए-क़दम-बोसी-ए-शौक़
क़ैस को लैली-ए-महमिल का ख़याल आया है
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
मंज़िलें जिन की क़दम-बोसी पे नाज़ाँ थीं बहुत
वो जरी क़ाफ़िला-सालार कहाँ खो गए हैं
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
हिमाला की बुलंदी भी क़दम-बोसी को गर उतरे
ज़मीं वाले ज़मीं के साथ ग़द्दारी नहीं करते