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ग़ज़ल
फ़सील-ए-शहर-ए-अना में शिगाफ़ मैं ने किया
ये कार-नामा ख़ुद अपने ख़िलाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इस बाग़ में है बाद-ए-ख़िज़ाँ ओ बाद-ए-क़हत
हर गुल के दिल में है ख़लिश-ए-ख़ार आज-कल