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नज़्म
तन्हाई
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
रात सुनसान है
आज हर फ़िक्र हर एहसास से बेगाना है
अपने हमराज़ किवाड़ों के अहाते के एवज़
मुस्तफ़ा ज़ैदी
हिंदी ग़ज़ल
दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली ख़ून से तर और ज़्यादा बे-क़रार