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नज़्म
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स
चंद लम्हों के लिए शोर उठा डूब गया
कोहना ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी की गिरह कट न सकी
साहिर लुधियानवी
शेर
हमें कुंज-ए-क़फ़स में छोड़ कर सय्याद जाता है
ख़ुदा जाने कि हम से ख़ुश है या नाशाद जाता है
लक्ष्मी नारायण शफ़ीक़
नज़्म
शब-चराग़
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स फिर वही तन्हाई है
वही यादों का चराग़ाँ वही ख़्वाबों का तिलिस्म
क़मर रईस
शेर
मुज़्दा ऐ यास कि याँ कुंज-ए-क़फ़स के क़ैदी
यक-ब-यक मौसम-ए-परवाज़ में मर जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
न पहुँचे छूट कर कुंज-ए-क़फ़स से हम नशेमन तक
पर-ए-पर्वाज़ ने यारी न की दीवार-ए-गुलशन तक