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ग़ज़ल
मुद्रिका-ए-बशर है क्या पाए जो उस की कुनह को
चाहा जो उस ने सो किया कौन कहे कि क्या किया
शाह नसीर
ग़ज़ल
कुनह ज़ात-ए-हक़ को क्या पावे कोई 'हातिम' कभू
सब के आजिज़ हैं यहाँ वहम-ओ-गुमाँ फ़हम ओ क़यास
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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ग़ज़ल
गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
जौन एलिया
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
तू राज़-ए-कुन-फ़काँ है अपनी आँखों पर अयाँ हो जा
ख़ुदी का राज़-दाँ हो जा ख़ुदा का तर्जुमाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैं
कुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
आदमी-नामा
याँ तक जो हो चुका है सो है वो भी आदमी
कुल आदमी का हुस्न ओ क़ुबह में है याँ ज़ुहूर