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नज़्म
ख़िदमत-ए-वतन
वतन की ख़िदमत-ए-बे-लौस है हर शख़्स पर लाज़िम
यही वो काम है जो आदमी के काम आता है
अहमक़ फफूँदवी
ग़ज़ल
बग़ैर ख़ूबी-ओ-ख़िदमत बशर अच्छे नहीं लगते
न जिन में फूल फल हों वो शजर अच्छे नहीं लगते
सुल्तान शाकिर हाश्मी
नज़्म
ख़िदमत-ए-वतन
वतन की ख़िदमत-ए-बे-लौस है हर शख़्स पर लाज़िम
यही वो काम है जो आदमी के काम आता है
अहमक़ फफूँदवी
ग़ज़ल
अपनी सुनाएँ आप की पूछें आपस के ग़म दूर करें
चंद अशआ'र हैं पेश-ए-ख़िदमत आप अगर मंज़ूर करें
रवेन्द्र जैन
ग़ज़ल
ख़िदमत-ए-हर-मुस्तहिक़ वो कार-गर तदबीर है
क़ुफ़्ल खुल जाते हैं जिस से बंदिश-ए-तक़दीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
चाहे गर तू उस की रहमत कर उस के बंदों की ख़िदमत
ख़िल्क़त से है नफ़रत गर तो ख़ालिक़ से है रग़बत कैसी
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
ख़ैर-ख़्वाह ओ मुख़्लिस ओ फ़िदवी जो कुछ कहिए सो हूँ
ऐब क्या है गर रहे ख़िदमत में मुझ सा आश्ना