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ग़ज़ल
शैख़-ए-ज़माँ क़दीम रविश के बुज़ुर्ग हैं
कितना बड़ा है गुम्बद-ए-दस्तार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
फ़ज़ल हुसैन साबिर
नज़्म
पीर-ए-मुग़ान-ए-उर्दू
राह-रौ रह-गुज़र-ओ-रहबर-ओ-उर्दू-ए-क़दीम
वर्ना मिलता था किसे नाम-ओ-निशान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
शिकवा
थी तो मौजूद अज़ल से ही तिरी ज़ात-ए-क़दीम
फूल था ज़ेब-ए-चमन पर न परेशाँ थी शमीम
अल्लामा इक़बाल
शेर
मिरे दिल से कभी ग़ाफ़िल न हों ख़ुद्दाम-ए-मय-ख़ाना
ये रिंद-ए-ला-उबाली बे-पिए भी तो बहकता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तमाशा-गह-ए-लाला-ज़ार
वो शाहनशहान-ए-आज़ीम
वो पिंदार-ए-रफ़्ता का जाह-ओ-जलाल-ए-क़दीम