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ग़ज़ल
हवा-ए-इंक़लाब-ए-दहर से रंग-ए-चमन बदले
मगर मुमकिन नहीं तर्ज़-ए-ख़ुलूस-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न बदले
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
मैं सत्ह-ए-शेर पे उभरा हूँ आफ़्ताब लिए
ख़ुलूस-ए-फ़िक्र शुऊर-नज़र के ख़्वाब लिए
नियाज़ हुसैन लखवेरा
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ग़ज़ल
यहाँ शुऊ'र के नाख़ुन तो हम भी रखते हैं
मगर ये उक़्दा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र कहाँ खोलें
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ज़ख़्म देते जाएँ लेकिन फ़िक्र-ए-मरहम भी करें
दर्द जब हद से सिवा हो जाए तो कम भी करें