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शेर
चमन में ख़ुश्क-साली पर है ख़ुश सय्याद कि अब ख़ुद
परिंदे पेट की ख़ातिर असीर-ए-दाम होते हैं
सदा अम्बालवी
नज़्म
ख़ुश्क-साली
इक मुजस्सम ख़ुश्क-साली ख़ुद हमारी ज़ात है
ज़िद हमारी हस्तियों की अब्र है बरसात है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नवम्बर के पहले हफ़्ते पर एक नज़्म
सवाद-ए-आग़ाज़-ए-ख़ुश्क-साली में क्यूँ वरक़ भीगने लगा है
धुआँ धुआँ शाम के अलाव में कोई जंगल जले
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
जो यूँ होता तो क्या होता
रोटी नहीं खाई
सरों की फ़स्ल बार-ए-ख़ुश्क-साली से गराँ है
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
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ग़ज़ल
नुमू का जोश कुछ नज़्ज़ारा-फ़रमा हो तो हो वर्ना
बहार अब के बरस ख़ुद पाइमाल-ए-ख़ुश्क-साली है
गौहर होशियारपुरी
ग़ज़ल
क्या बहार-ओ-ख़ुश्क-साली क्या 'उरूज और क्या ज़वाल
कल ज़मीन-ओ-आसमाँ मुझ को बहम होने को है