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ग़ज़ल
सुनता है कौन आशिक़ों की आह-ओ-ज़ारियाँ
गोश-ए-चमन को शोर-ए-अनादिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
गोश-ए-बेहोश वो क्या जिस ने कि हंगाम-ए-नवा
कोई नाला ही लब-ए-नय से निकलता न सुना
शानुल हक़ हक़्क़ी
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ग़ज़ल
लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए
क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार था
उस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया
अहमद फ़राज़
शेर
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
शेर अगर दिल के लहू में डूब कर निकले तो क्या
ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गोश-ए-दिल-ओ-जाँ में हैं अमानत तिरी बातें
मोती कभी निकलेंगे न इस कान से बाहर